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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें आरोपी से जमानत की शर्त के तौर पर गूगल मैप्स लोकेशन साझा करने के लिए नहीं कह सकतीं
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फैसला सुनाया कि अदालतें जमानत देने की शर्त के तौर पर आरोपियों से उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए गूगल मैप्स लोकेशन साझा करने के लिए नहीं कह सकतीं। ऐसा करना निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा।
जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुयान की पीठ ने कहा कि ऐसी शर्तें नहीं हो सकतीं जो पुलिस को लगातार आरोपियों की गतिविधियों पर नज़र रखने और वस्तुतः उनकी निजता में झांकने में सक्षम बनाती हों । इसने यह भी माना कि कोई भी अदालत जमानत की ऐसी शर्तें नहीं लगा सकतीं जो जमानत देने के उद्देश्य को ही विफल कर दें। शीर्ष अदालत ने यह आदेश इस बात की जांच करते हुए पारित किया कि क्या आरोपी को अपने स्थान तक पहुंचने के लिए जांच अधिकारी के साथ गूगल मैप्स स्थान साझा करने की जमानत शर्त व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन है ।.
पीठ ने आज दिए अपने फैसले में कहा, "हमने दो बातें कही हैं। जमानत की कोई शर्त जमानत के उद्देश्य को विफल नहीं कर सकती। हमने कहा है कि गूगल पिन
कोई शर्त नहीं हो सकती। पुलिस जमानत के लिए आरोपी की निजी जिंदगी में ताक-झांक नहीं कर सकती।" विस्तृत फैसला आज दिन में सुनाया जाएगा।
यह आदेश दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 2022 में एक नाइजीरियाई नागरिक फ्रैंक विटस को अंतरिम जमानत देने के आदेश में लगाई गई कुछ शर्तों के खिलाफ अपील पर पारित किया गया था, जो एक ड्रग मामले में आरोपी था।
उच्च न्यायालय ने आरोपी व्यक्ति और एक सह-आरोपी को गूगल मैप्स पर एक पिन डालने का आदेश दिया था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मामले के जांच अधिकारी को उनका स्थान उपलब्ध हो।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने आरोपियों से नाइजीरिया के उच्चायोग से यह आश्वासन भी लेने को कहा कि वे भारत नहीं छोड़ेंगे और ट्रायल कोर्ट में पेश होंगे।
इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि जमानत की ऐसी शर्तें नहीं हो सकतीं जो जमानत देने के उद्देश्य को विफल कर दें।.